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रामजानकी विवाहपञ्चमी विशेष, मिथिलामे सभा लागल, फेरसँ शिवक धनुष टुटल



सुजीतकुमार झा ।

सोम दिन फेरसँ मिथिलामे सभा लागल । संसारक राजा महराजासभ चारुकातसँ बैसल छलथि । बीचमे शिवक पिनाक धनुष राखल छल । दर्जनो बीर अएला धनुषके हिलाधरि नहि सकलथि । फेर त्रेता युग जकाँ एक युवकके आश्चर्यजनक ढंगसँ आगमन भेल आ धनुष टुटि गेल । सुनएमे नाटक जकाँ लागल हएत मुदा विवापञ्चमी महोत्सवक क्रममे जनकपुरमे त्रेता युगक घटना दोहराओल गेल । धनुष तोडएवला किओ आओर नहि भगवान रामे छलाह । ओहिठाम रहल सीतासँग ओहिना हुनक स्वम्बर भेल घण्टो महिलासभ गीत गएलन्हि ।

जानकी मन्दिरक महन्थ रामतपेश्वर दास वैष्णव कहैत छथि धनुष यज्ञके लऽ कऽ जानकी मन्दिरमे भोरेसँ चहलपहल छल, एकटा आश्चर्यजनक आकर्षण बुझाइत छल ।


ओना त्रेता युग जकाँ अवस्था नहि आयल छल । सभके बुझल छल धनुष टुटबे करतै । त्रेता युगमे जखन धनुषके प्रत्यंचा चढावएके पालो आएल, ओतए उपस्थित किओ गोटे कोनो प्रत्यंचाके तऽ बाते छोडी, धनुषधरि नहि हिला सकलथि । ई स्थिति देखिकऽ राजा जनकके बहुत पश्चाताप भेल रहन्हि । तुलसीदास रामचरित मानसमे जनकक बात एना उल्लेख कएने छथि

अब अनि कोउ माखै भट मानी, वीर विहीन मही मैं जानी ।

तजहु आस निज निज गृह जाहू, लिखा न विधि वैदेही बिबाहू ।।

सुकृतु जाई जौ पुन पहिहरऊँ, कुउँरि कुआरी रहउ का करऊँ ।

जो तनतेऊँ बिनु भट भुविभाई, तौ पनु करि होतेऊँ न हँसाई ।।

खैर जखन सोम दिन जानकी मन्दिरक प्रागंणमे धनुष टुटल चारुकात खुशीके लहरि दौडि गेल छल । धनुष टुटलाक बादक अवस्थाक बर्णनन रामपुरवाली नामसँ परिचित महिला करैत छथि अदभुत दृश्य जे देखलक ओ आनन्दित भऽ गेल ।

धनुष यज्ञ सहित सम्पूर्ण वैवाहिक कार्यक्रम देखवाक लेल रामपुरवाली सीमावर्ती मधुवनीसँ जनकपुर आयल छथि । हुनक गामसँ ५० गोटेक टोली दूदिन पहिने जनकपुर आबि चुकल अछि ।


सात दिवसीय बैवाहिक कार्यक्रम अन्तर्गत नगर दर्शन आ फुलवारी लीला संगहि धनुष यज्ञ सम्पन्न भऽ चुकल अछि । मंगल दिन तिलकोत्सव, बुध दिन मटकोर, बृहस्पति दिन विवाह आ शुक्र दिन रामकलेवा हएत ।


सात दिवसीय बैवाहिक कार्यक्रम अन्तर्गत नगर दर्शन आ फुलवारी लीला संगहि धनुष यज्ञ सम्पन्न भऽ चुकल अछि । मंगल दिन तिलकोत्सव, बुध दिन मटकोर, बृहस्पति दिन विवाह आ शुक्र दिन रामकलेवा हएत । जानकी मन्दिरक महन्थ राम तपेश्वर दास वैष्णव कहैत छथि हम त जनकजीक भूमिकामे छी कोनो प्रकारसँ विवाहमे कमी नहि भऽ जाए ताहिमे लागल रहैत छी ।


महन्थजीक फूर्ति देखए लायक अछि । जानकी मन्दिरमे गीतनाद आ भजनकीर्तन १२ बजे राति धरि चलैत रहैत अछि फेर भोरेसँ शुरु भऽ जाइत अछि । सभमे महन्थक उपस्थिति ।

पिनाक धनुषक चर्चा
जखने रामायणक प्रसंग अबैत अछि भगावान शिवक पिनाक धनुषके चर्चा भइए जाइत अछि । इहे धनुषके मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम सीतास्वम्बरक समयमे तोडने छलथि ।पिनाक भगवान भोलेनाथ लग एहन धनुष छल जकर टंकारसँ बादल फाटि जाइत छल आ पहाडसभ हिलए लगैत छल । ई धनुषक एक तीरसँ त्रिपुरासुरक तीनू नगरके भगवान शंकर ध्वस्त कऽ देने रहथि ।
शिव पुराणमे भगवान शंकरक ई धनुषके विस्तृत उल्लेख भेटैत अछि । जखन राजा दक्षक यज्ञमें यज्ञक भाग शिवके नही देलाक कारणे भगवान शंकर बहुत क्रोधित भऽ गेल रहथि । ओ सभ देवताके अपन धनुष (पिनाक) सँ नष्ट करबाक ठानि लेने रहथि । एकर टंकारसँ पूरे धरतीक वातावरण भयानक भऽ गेल छल । बहुत मुश्किलसँ हुनक तामस शान्त कएल गेल छल । शान्त भेलाक बाद शिव ओ धनुष देवतासभके दऽ देलन्हि ।
देवतासभ ओ धनुष राजा जनकक पूर्वज देवरतके देने शिव पुराणमे उल्लेख रहल अछि । . राजा जनकक पूर्वजमे निमिक ज्येष्ठ पुत्र देवरत रहथि । शिव धनुष हुनके लग धरोहर स्वरुप सुरक्षित छल । कहल जाइत छैक ई धनुषके भगवान शंकर स्वयं अपन हातसँ बनौने रहथि । किछु धार्मिक पुस्तकमे ब्रह्माक आदेशमे भगवान विश्वकर्माद्वारा ई धनुष वनाओल गेल उल्लेख अछि । पिनाकके विषयमे कहल जाइत छैक सर्पाकार छल जाहिमे सापक सातटा फन छल ।
हुनकर ई विशालकाय धनुषक किओ उठावएके क्षमता नहीं रखैत छल । मुदा भगवान राम एकरा उठा कऽ प्रत्यंचा चढ़ौलन्हि आ एकहि झटकामे तोडि देने रहथि ।